25 बरस पहले...

कवितांए बनाते थे पापा, आजकल बहाने बनाते हैं… समय नहीं मिलता, ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गयीं हैं, हिन्दी टाइपिंग नहीं आती, लिखने की आदत नहीं रही, कहीं छपने लायक है भी क्या?
इस बार फ़िर घर की सफ़ाई के दौरान उनकी कॉपी मिली जिसमें वे कुछ 25 साल पहले (जैसा पापा ने बताया… क्योंकि मैं तो खुद अभी 19 साल की हूँ) कवितांए और विचार लिखते थे, तो मैंने सोचा पापा का एक ब्लॉग ही बना दिया जाये… सो बना दिया…चूँकि ये रचनाँए 25 वर्ष पुरानी हैं तो उन्हें उस समय को और पापा की उस समय की उम्र को ध्यान में रखते हुए ही पढ़ा जाये…

Tuesday, 27 September 2011

झलकियाँ (2)


ड़कनों ने आज आन्दोलन कर दिया
मजबूरन दिल को काम रोको प्रस्ताव 
पास करना पड़ा

देखो करिश्मा दुनिया का कि
मैं मृतप्राय साबित न कर सका
मजबूरन मुझे लाश बनकर जीना पड़ा



6 comments:

  1. आपके पापा का ब्लॉग अच्छा लगा.

    पापा की अभिव्यक्ति तो कमाल की लगी,रश्मि जी.

    आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  2. bahut bahut hi sateek avam bhav purn abhivyakti.
    akxharshah sach ko pratibibit karti hui post
    sadar namaskaar
    poonam

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  3. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति व्यंग्य और कसक साथ साथ लिए .नया प्रयोग दिल ने काम रोको प्रसताव .....

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  4. blog achha hai ..... achha likha

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  5. blog achha hai ..... achha likha

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