25 बरस पहले...

कवितांए बनाते थे पापा, आजकल बहाने बनाते हैं… समय नहीं मिलता, ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गयीं हैं, हिन्दी टाइपिंग नहीं आती, लिखने की आदत नहीं रही, कहीं छपने लायक है भी क्या?
इस बार फ़िर घर की सफ़ाई के दौरान उनकी कॉपी मिली जिसमें वे कुछ 25 साल पहले (जैसा पापा ने बताया… क्योंकि मैं तो खुद अभी 19 साल की हूँ) कवितांए और विचार लिखते थे, तो मैंने सोचा पापा का एक ब्लॉग ही बना दिया जाये… सो बना दिया…चूँकि ये रचनाँए 25 वर्ष पुरानी हैं तो उन्हें उस समय को और पापा की उस समय की उम्र को ध्यान में रखते हुए ही पढ़ा जाये…
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Sunday, 11 September 2011

झलकियाँ (1)



न जाने किसका
इन्तज़ार है मुझे
मैं स्वय ही नहीँ जानता
कर रहा हूँ
न कोई काम
देखो न अमूल्य समय को भी
नहीँ पहचानता
मगर कितना बैचेन हूँ
मैं तेरे लिए
और मेरी बैचेनी को कोई
नहीं मानता

~ राम स्वरूप वर्मा।